मेरी आँखों से ख़्वाब ले के गया
By ahmed-arsalanMay 17, 2022
मेरी आँखों से ख़्वाब ले के गया
नींद भी महताब ले के गया
छोड़ कर तीरगी में क्यों मुझ को
वो मिरा आफ़्ताब ले के गया
मैं ने ग़ीबत जो की थी उस की कभी
बदले मेरा सवाब ले के गया
दे के मुझ को वो हिज्र की रातें
मेरा हुस्न-ए-शबाब ले के गया
मुझ को ख़ंजर दिखा के वो 'अहमद'
मेरे दिल की किताब ले के गया
नींद भी महताब ले के गया
छोड़ कर तीरगी में क्यों मुझ को
वो मिरा आफ़्ताब ले के गया
मैं ने ग़ीबत जो की थी उस की कभी
बदले मेरा सवाब ले के गया
दे के मुझ को वो हिज्र की रातें
मेरा हुस्न-ए-शबाब ले के गया
मुझ को ख़ंजर दिखा के वो 'अहमद'
मेरे दिल की किताब ले के गया
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