पछता रहे हैं दर्द के रिश्तों को तोड़ कर
By aftab-arifOctober 23, 2020
पछता रहे हैं दर्द के रिश्तों को तोड़ कर
सर फोड़ते हैं अपने ही दीवार-ओ-दर से लोग
पत्थर उछाल उछाल के मरहम के नाम पर
करते रहे मज़ाक़ मिरे ज़ख़्म मेरे लोग
कब टूटे देखिए मिरे ख़्वाबों का सिलसिला
अब तो घरों को लौट रहे हैं सफ़र से लोग
सैलाब जंग ज़लज़ले तूफ़ान आँधियाँ
सुनते रहे कहानियाँ बूढ़े शजर से लोग
क्या ख़ूब शोहरतों की हवस है ख़ुद अपने नाम
लिखने लगे किताबों में अब आब-ए-ज़र से लोग
सर फोड़ते हैं अपने ही दीवार-ओ-दर से लोग
पत्थर उछाल उछाल के मरहम के नाम पर
करते रहे मज़ाक़ मिरे ज़ख़्म मेरे लोग
कब टूटे देखिए मिरे ख़्वाबों का सिलसिला
अब तो घरों को लौट रहे हैं सफ़र से लोग
सैलाब जंग ज़लज़ले तूफ़ान आँधियाँ
सुनते रहे कहानियाँ बूढ़े शजर से लोग
क्या ख़ूब शोहरतों की हवस है ख़ुद अपने नाम
लिखने लगे किताबों में अब आब-ए-ज़र से लोग
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