पर्दे को जो लौ दे वो झलक और ही कुछ है
By anand-narayan-mullaOctober 25, 2020
पर्दे को जो लौ दे वो झलक और ही कुछ है
नादीदा है शो'ला तो लपक और ही कुछ है
टकराते हुए जाम भी देते हैं खनक सी
लड़ती हैं निगाहें तो खनक और ही कुछ है
इशरत-गह-ए-दौलत भी है गहवारा-ए-निकहत
मेहनत के पसीने की महक और ही कुछ है
हाँ जोश जवानी भी है इक ख़ुल्द-ए-नज़ारा
इक तिफ़्ल की मा'सूम हुमक और ही कुछ है
शब को भी महकती तो हैं ये अध-खिली कलियाँ
जब चूम लें किरनें तो महक और ही कुछ है
कमज़ोर तो झुकता ही है क़ानून के आगे
ताक़त कभी लचके तो लचक और ही कुछ है
अश्कों से भी हो जाता है आँखों में चराग़ाँ
बिन-बरसी निगाहों की चमक और ही कुछ है
रो कर भी थके जिस्म को नींद आती है लेकिन
बच्चे के लिए माँ की थपक और ही कुछ है
बज़्म-ए-अदब-ए-हिन्द के हर गुल में है ख़ुश्बू
'मुल्ला' गुल-ए-उर्दू की महक और ही कुछ है
नादीदा है शो'ला तो लपक और ही कुछ है
टकराते हुए जाम भी देते हैं खनक सी
लड़ती हैं निगाहें तो खनक और ही कुछ है
इशरत-गह-ए-दौलत भी है गहवारा-ए-निकहत
मेहनत के पसीने की महक और ही कुछ है
हाँ जोश जवानी भी है इक ख़ुल्द-ए-नज़ारा
इक तिफ़्ल की मा'सूम हुमक और ही कुछ है
शब को भी महकती तो हैं ये अध-खिली कलियाँ
जब चूम लें किरनें तो महक और ही कुछ है
कमज़ोर तो झुकता ही है क़ानून के आगे
ताक़त कभी लचके तो लचक और ही कुछ है
अश्कों से भी हो जाता है आँखों में चराग़ाँ
बिन-बरसी निगाहों की चमक और ही कुछ है
रो कर भी थके जिस्म को नींद आती है लेकिन
बच्चे के लिए माँ की थपक और ही कुछ है
बज़्म-ए-अदब-ए-हिन्द के हर गुल में है ख़ुश्बू
'मुल्ला' गुल-ए-उर्दू की महक और ही कुछ है
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