शाम का ग़म भी जफ़ाकार उदासी मेरी

By monika-sharma-sarthiNovember 8, 2020
शाम का ग़म भी जफ़ाकार उदासी मेरी
ज़ख़्म दे जाती है हर बार उदासी मेरी
जब भी होंटों को हँसाया यही पूछा ख़ुद से
क्यूँ है ख़ुशियों पे कड़ा बार उदासी मेरी


मेरे साए से लिपटने को तरसती रहती
बन गई मेरी तलबगार उदासी मेरी
गहरे तन्हाई के आलम में सुला जाती है
कितनी बन जाती है ख़ूँ-ख़्वार उदासी मेरी


मेरे अश्कों से बही बन के लहू दिल का यूँ
हो कटीली कोई तलवार उदासी मेरी
'सारथी' लुट न कहीं जाए अक़द भी तुझ से
मुझ से कहती है कई बार उदासी मेरी


19278 viewsghazalHindi