थकावटों से बैठ के सफ़र उतारिए कहीं

By wahab-danishNovember 24, 2020
थकावटों से बैठ के सफ़र उतारिए कहीं
बला से गर्म रेत हो अगर न मिल सके ज़मीं
कहो तो इस लिबास में तुम्हारे साथ मैं चलूँ
ग़ुबार ओढ़ लूँगा मैं बदन पे आज कुछ नहीं


बतों का ग़ोल अब यहाँ उतर के पा सकेगा क्या
खड़े हो तुम जहाँ पे अब वो नर्म झील थी नहीं
खुले हुए मकान में अदा भी तेरी ख़ूब है
ज़बाँ से क़ुफ़्ल की तलब कलीद ज़ेर-ए-आस्तीं


तमाम उम्र पा-ब-गिल न जंगलों से मिल सका
दरख़्त ज़र्द हाल सा जो अब भी है खड़ा यहीं
वो रंग का हुजूम सा वो ख़ुशबुओं की भीड़ सी
वो लफ़्ज़ लफ़्ज़ से जवाँ वो हर्फ़ हर्फ़ से हसीं


अभी भी इस मकान में पलंग तख़्त मेज़ है
गए जो सैर के लिए तो फिर न आ सके मकीं
40642 viewsghazalHindi