वो तेज़-रौ था मगर रुक के देखना उस का मुसाफ़िरों पे तो उक़्दा न खुल सका उस का वो नेक-दिल है भला है ख़ुदा-शनास भी है किसे रवा है कि दिल से करे गिला उस का शजर ने पात उठाए तो हम भी जाग उठे हमें था पेश ज़माने में फ़ैसला उस का वो मेरे नाम की तस्बीह क्यों नहीं करता मोहब्बतों में रवय्या है आम सा उस का किसी किसी को बनाते हैं राज़दार अपना किसी किसी को सुनाते हैं मर्सिया उस का जमाल-ए-यार का नक़्शा कहीं से खिंचता है वरा-ए-फ़हम से उठता है ज़ाविया उस का ये लग रहा है मोहब्बत की उम्र ख़त्म हुई कि हिज्र फैलता जाता है जा-ब-जा उस का वही 'अदन' जो सितारों की बात करता था ख़ुद अपना चाँद तो गहना के रह गया उस का