दो तरफ़ा सफर था, मुश्किल था मगर इतना न था,

दो तरफ़ा सफर था, मुश्किल था मगर इतना न था,
इक तारफ घर था, मसरूफियत थी मगर इतनी न थी,
इश्क़ था, दीदार था, इबादत थी मगर इतनी न थी,
एक तरह तेरा ज़िर्क में भी फ़िक्र था मगर इतना ना था,
मलाल था हमें देखा पे मगर इतना ना था,
मन की जिंदगी थाम सी गई थी मगर,
धड़कनो को भी तेरे आने का इंतजार था,
सफर था मुश्किल मगर इतना ना था,

लिबास था इंसान का मगर इतना ना था,
जिस्म में रूह थी मगर रूहनियात न थी,
आंखे तकसीम थी मगर जवाब न था,
सितारों की महफिल थी मगर वो बात न थी
बहते पानी पर सितारो की वो सौगत ना थी,
चमक थी पत्थर में भी मगर इतनी ना थी,
मौसम को भी ना जाने क्या भीगी जुल्फों का इंतजार था,
दस्तक दे कोई जिंदगी में श्याम किस्मत को भी इंतजार था,
सफर था मुश्किल मगर इतना ना था,

क्या होली के रंगो में भी अब वो बात न थी,
मुलकत हो खातिर अब हम रंग-ए-गुलाल में बात भी ना थी,
तुझे रंग लगा साकू या तेरे रंग में रंग जाओ यही खुदा से इल्तेजा थी,
जज्बात बहुत मगर रंग-ए-मिसाल अब वो बात न थी,
वो दर थी रिश्तों में मगर तू भर खातिर तेरी तकदीर कहा थी,
तेरी महफ़िल में जमाना था मगर वक़फ़ियत किसी और की गुलाम थी,
फरेब कर खातिर तू तेरे चाहरे पे वो बात ना थी,
जो तुझमे बात थी किसी और में ना थी,
सफर था मुश्किल था मगर इतना ना था,

रिश्तों की बदनाम गलियों में अपना पान बच्चा खातिर कोई,
अक्सर यही दुनिया में खिचतां थी,
सफर जो धूप का तजुर्बा दे गया,
आब चावों में चलने की बात कह थी,
कांटो की सेज थी मगर मुझे भी चलने की आदत थी,
सफर था मुश्किल था मगर इतना ना था,

वो तेरी याद के टुकड़े द मेरी किताब के पनो में,
मगर अब उनमे भी वो महक कहा थी,
किताब थी अल्फाज़ थे पढ़ने में दीकत कह थी,
जिस पाने पर में रुका वही तेरी याद थी,
किताब-ए-जिंदगी लिख सका मेरी औकात कहा थी,
अल्फाज़-ए-ज़िंदगी बया करे तू तुझे वो बात ना थी,
दीवर थी मगर मेरी इतनी ऊंची चालान न थी,
हसरतो का आलम था मगर मेरी किस्मत न थी,
तुझपे किताब लिख साकू खुदा से मेरी यही इल्तेजा थी,
वो तेरी याद का दाग था रूह पे मगर इतना ना था,
ज़खम ताज़ा था मगर मरहम-ए-वक़्त पास न था,
सफर था मगर इतना ना था,

वक्त था
दुफ में अपना साया धुंडने का, खवाहिशो को पंख लगाने का
हमें शब को खतम कर फिर नई सुबेह देखने का,

वक्त था
वो यादों का, हसरतों का, रिश्तों की मसरूफियत का
वो चांद सितारों का, वो जिंदा-दिली का,
वो अल्फाज़-ए-किताब का था मगर किसी और का ना था,
लखते-जिगर पहवा वक्त कहा था
वक़्त कहा था............
जिंदगी का फलसफा सफर बस इतना था,
इतना था सफर मुश्किल था मगर इतना न था

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