रेशम का कीड़ा
By अलीमुल्लाह-हालीJune 28, 2023
बच्चो हर मुल्क और हर क़ौम में कुछ कहानियाँ ऐसी मशहूर रहती हैं जो उस मुल्क के वासियों या क़ौम के अफ़राद के ज़हनों में पुश्त-हा-पुश्त से चली आती हैं
साईंस की बढ़ती हुई तरक़्क़ी भी अवाम के ज़ह्न से वो हिकायतें नहीं निकाल सकती।
ऐसी हिकायतों को “लोक कहानी” कहते हैं
आज मैं तुमको वियतनाम की एक लोक कहानी सुनाता हूँ
अब ये लोक कहानी एक अलामत के तौर पर इस्तिमाल होती है।
वाक़िया यूँ बयान किया जाता है कि बहुत ज़माने पहले वियतनाम में एक जज़बाती लड़की थी
बचपन ही में उसकी माँ मर चुकी थी
उसकी परवरिश महल्ले की एक बूढ़ी औरत कर रही थी। उसका बाप ताजिर था। इसलिए ज़्यादा-तर घर से बाहर ही रहता था। माँ के मर जाने और बाप के साथ न रहने की वजह से वो कुछ बे-पर्वा
अल्हड़ और शोख़ हो गई थी। उसका बाप साल भर में सिर्फ़ चंद दिनों के लिए मौसम-ए-बहार में घर आता था। उसकी लड़की अब कुछ होश-गोश की हो गई थी और दिन-भर कपड़े बुनती रहती थी
शाम को वो दरिया की लहरों पर ख़ाली-अल-ज़ह्न हो कर निगाह डाला करती थी।
एक रोज़ जब वो मकान के दरवाज़े पर खड़ी हुई थी तो उसे बाग़ में पत्ते खड़कने की आवाज़ आई
उसने देखा कि उसके बाप का सफ़ेद घोड़ा अस्तबल से निकल आया है
घोड़े को देख कर लड़की को बाप की याद आ गई
घोड़े के पास पहुँच कर यूँ ही बे-पर्वाई से बोली कि “अगर तुम मेरे वालिद को ढूँढ कर उन्हें मेरे पास ले आओगे तो मैं तुमसे शादी कर लूँगी।”
इसके बाद ही घोड़ा एक तरफ़ रवाना हो गया और वो मुसलसल तीन दिन और तीन रात जंगलों और पहाड़ों में चलता रहा
फिर वो एक पहाड़ी के क़रीब सराय के पास जा कर रुका और ज़ोर से हिन-हिनाया
एक ताजिर(जो हक़ीक़तन लड़की का बाप था और सराय में बैठा शराब पी रहा था।) घोड़े की आवाज़ सुनते ही प्याला फेंक कर बाहर आया। घोड़े को देख कर उसे ये अंदेशा हुआ कि घर में कुछ न कुछ हादिसा हुआ है। अपने मालिक को देख कर घोड़ा ख़ुशी से दुम हिलाने और हिन-हिनानी लगा। इसके बाद मालिक के साथ ही वो घर की तरफ़ चल पड़ा।
घोड़े के साथ बाप को देख कर लड़की की ख़ुशी की कोई इंतिहा न रही मगर वो इस अरसे में ये भूल गई कि उसने घोड़े से क्या वादा किया था।
घोड़ा उसी रोज़ से बीमार पड़ गया और अस्तबल में पड़ा रहा। वो न तो खाता था और न ही उसे नींद आती थी
वो अपनी ग़मगीं और उदास आँखों से अस्तबल में बैठा-बैठा लड़की के तमाम हरकात-ओ-सकनात को देखता था।
जब कभी लड़की पास से गुज़रती तो घोड़ा ख़ास अंदाज़ से आह भरता। लेकिन लड़की के दिल में उसका कोई असर न होता था।
जब घोड़े की हालत दिन-ब-दिन ख़राब होने लगी तो लड़की के बाप ने अपनी बेटी से उसके बारे में पूछ-गछ की
लड़की ने पूरा वाक़िया उसे बता दिया। वाक़िया सुन कर बाप सख़्त हैरत-ज़दा और परेशान हुआ
उस ग़रीब जानवर का कुछ ख़्याल किए बग़ैर उसने अपना तीर कमान सँभाला और घोड़े को मार दिया। उसने घोड़े का चमड़ा निकलवा कर पास की झाड़ी पर रख दिया। उसके बाद ताजिर अपने सफ़र पर ये कह कर रवाना हो गया कि वो घोड़े के चमड़े को रोज़ धूप में सुखाया करे ताकि कुछ दिनों के बाद वो काम का हो जाए।
एक दोपहर जबकि लड़की घर में कपड़े बुन रही थी एक तूफ़ान आया
वो चमड़ा उठाने के लिए झाड़ी की तरफ़ बेज़ारी से ये कहती हुई दौड़ी कि “नापाक चीज़! तुम्हारी वजह से मुझे परेशानी होती है मेरा तो जी चाहता कि तुझको तालाब में फेंक दूँ।”
जैसे ही उसने आख़िरी अलफ़ाज़ अदा किए चमड़ा ख़ुद-ब-ख़ुद उठ कर और इस लड़की को लपेट कर आसमान की तरफ़ उड़ गया... कुछ वक़फ़े के बाद वो बेर के दरख़्तों के पास रेशम के एक कोइए की शक्ल में उतरा जिसके अंदर रेशम का कीड़ा था।
ये कहानी वियतनाम में अब भी याद की जाती है। देहातों में जब रेशम का कोइया नज़र आता है तो लोग अपने बच्चों को बताते हैं कि अव्वल-अव्वल ये घोड़े का चमड़ा था और इसके बीच में रेशम का कीड़ा वही शोख़
अलहड़ा और बेपर्वा लड़की थी।
साईंस की बढ़ती हुई तरक़्क़ी भी अवाम के ज़ह्न से वो हिकायतें नहीं निकाल सकती।
ऐसी हिकायतों को “लोक कहानी” कहते हैं
आज मैं तुमको वियतनाम की एक लोक कहानी सुनाता हूँ
अब ये लोक कहानी एक अलामत के तौर पर इस्तिमाल होती है।
वाक़िया यूँ बयान किया जाता है कि बहुत ज़माने पहले वियतनाम में एक जज़बाती लड़की थी
बचपन ही में उसकी माँ मर चुकी थी
उसकी परवरिश महल्ले की एक बूढ़ी औरत कर रही थी। उसका बाप ताजिर था। इसलिए ज़्यादा-तर घर से बाहर ही रहता था। माँ के मर जाने और बाप के साथ न रहने की वजह से वो कुछ बे-पर्वा
अल्हड़ और शोख़ हो गई थी। उसका बाप साल भर में सिर्फ़ चंद दिनों के लिए मौसम-ए-बहार में घर आता था। उसकी लड़की अब कुछ होश-गोश की हो गई थी और दिन-भर कपड़े बुनती रहती थी
शाम को वो दरिया की लहरों पर ख़ाली-अल-ज़ह्न हो कर निगाह डाला करती थी।
एक रोज़ जब वो मकान के दरवाज़े पर खड़ी हुई थी तो उसे बाग़ में पत्ते खड़कने की आवाज़ आई
उसने देखा कि उसके बाप का सफ़ेद घोड़ा अस्तबल से निकल आया है
घोड़े को देख कर लड़की को बाप की याद आ गई
घोड़े के पास पहुँच कर यूँ ही बे-पर्वाई से बोली कि “अगर तुम मेरे वालिद को ढूँढ कर उन्हें मेरे पास ले आओगे तो मैं तुमसे शादी कर लूँगी।”
इसके बाद ही घोड़ा एक तरफ़ रवाना हो गया और वो मुसलसल तीन दिन और तीन रात जंगलों और पहाड़ों में चलता रहा
फिर वो एक पहाड़ी के क़रीब सराय के पास जा कर रुका और ज़ोर से हिन-हिनाया
एक ताजिर(जो हक़ीक़तन लड़की का बाप था और सराय में बैठा शराब पी रहा था।) घोड़े की आवाज़ सुनते ही प्याला फेंक कर बाहर आया। घोड़े को देख कर उसे ये अंदेशा हुआ कि घर में कुछ न कुछ हादिसा हुआ है। अपने मालिक को देख कर घोड़ा ख़ुशी से दुम हिलाने और हिन-हिनानी लगा। इसके बाद मालिक के साथ ही वो घर की तरफ़ चल पड़ा।
घोड़े के साथ बाप को देख कर लड़की की ख़ुशी की कोई इंतिहा न रही मगर वो इस अरसे में ये भूल गई कि उसने घोड़े से क्या वादा किया था।
घोड़ा उसी रोज़ से बीमार पड़ गया और अस्तबल में पड़ा रहा। वो न तो खाता था और न ही उसे नींद आती थी
वो अपनी ग़मगीं और उदास आँखों से अस्तबल में बैठा-बैठा लड़की के तमाम हरकात-ओ-सकनात को देखता था।
जब कभी लड़की पास से गुज़रती तो घोड़ा ख़ास अंदाज़ से आह भरता। लेकिन लड़की के दिल में उसका कोई असर न होता था।
जब घोड़े की हालत दिन-ब-दिन ख़राब होने लगी तो लड़की के बाप ने अपनी बेटी से उसके बारे में पूछ-गछ की
लड़की ने पूरा वाक़िया उसे बता दिया। वाक़िया सुन कर बाप सख़्त हैरत-ज़दा और परेशान हुआ
उस ग़रीब जानवर का कुछ ख़्याल किए बग़ैर उसने अपना तीर कमान सँभाला और घोड़े को मार दिया। उसने घोड़े का चमड़ा निकलवा कर पास की झाड़ी पर रख दिया। उसके बाद ताजिर अपने सफ़र पर ये कह कर रवाना हो गया कि वो घोड़े के चमड़े को रोज़ धूप में सुखाया करे ताकि कुछ दिनों के बाद वो काम का हो जाए।
एक दोपहर जबकि लड़की घर में कपड़े बुन रही थी एक तूफ़ान आया
वो चमड़ा उठाने के लिए झाड़ी की तरफ़ बेज़ारी से ये कहती हुई दौड़ी कि “नापाक चीज़! तुम्हारी वजह से मुझे परेशानी होती है मेरा तो जी चाहता कि तुझको तालाब में फेंक दूँ।”
जैसे ही उसने आख़िरी अलफ़ाज़ अदा किए चमड़ा ख़ुद-ब-ख़ुद उठ कर और इस लड़की को लपेट कर आसमान की तरफ़ उड़ गया... कुछ वक़फ़े के बाद वो बेर के दरख़्तों के पास रेशम के एक कोइए की शक्ल में उतरा जिसके अंदर रेशम का कीड़ा था।
ये कहानी वियतनाम में अब भी याद की जाती है। देहातों में जब रेशम का कोइया नज़र आता है तो लोग अपने बच्चों को बताते हैं कि अव्वल-अव्वल ये घोड़े का चमड़ा था और इसके बीच में रेशम का कीड़ा वही शोख़
अलहड़ा और बेपर्वा लड़की थी।
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