आ निकल के मैदाँ में दो-रुख़ी के ख़ाने से
By majrooh-sultanpuriNovember 4, 2020
![आ निकल के मैदाँ में दो-रुख़ी के ख़ाने से](/_next/image?url=http%3A%2F%2Fcdn.pagalshayari.com%2Fimages%2FGhazal%2Fa-nikal-ke-maidan-men-dorukhi-ke-khane-se-majrooh-sultanpuri-ghazal-hindi.jpg&w=1920&q=75)
आ निकल के मैदाँ में दो-रुख़ी के ख़ाने से
काम चल नहीं सकता अब किसी बहाने से
अहद-ए-इंक़लाब आया दौर-ए-आफ़्ताब आया
मुंतज़िर थीं ये आँखें जिस की इक ज़माने से
अब ज़मीन गाएगी हल के साज़ पर नग़्मे
वादियों में नाचेंगे हर तरफ़ तराने से
अहल-ए-दिल उगाएँगे ख़ाक से मह ओ अंजुम
अब गुहर सुबुक होगा जौ के एक दाने से
मनचले बुनेंगे अब रंग-ओ-बू के पैराहन
अब सँवर के निकलेगा हुस्न कार-ख़ाने से
आम होगा अब हमदम सब पे फ़ैज़ फ़ितरत का
भर सकेंगे अब दामन हम भी इस ख़ज़ाने से
मैं कि एक मेहनत-कश मैं कि तीरगी-दुश्मन
सुब्ह-ए-नौ इबारत है मेरे मुस्कुराने से
ख़ुद-कुशी ही रास आई देख बद-नसीबों को!
ख़ुद से भी गुरेज़ाँ हैं भाग कर ज़माने से
अब जुनूँ पे वो साअत आ पड़ी कि ऐ 'मजरूह'
आज ज़ख़्म-ए-सर बेहतर दिल पे चोट खाने से
काम चल नहीं सकता अब किसी बहाने से
अहद-ए-इंक़लाब आया दौर-ए-आफ़्ताब आया
मुंतज़िर थीं ये आँखें जिस की इक ज़माने से
अब ज़मीन गाएगी हल के साज़ पर नग़्मे
वादियों में नाचेंगे हर तरफ़ तराने से
अहल-ए-दिल उगाएँगे ख़ाक से मह ओ अंजुम
अब गुहर सुबुक होगा जौ के एक दाने से
मनचले बुनेंगे अब रंग-ओ-बू के पैराहन
अब सँवर के निकलेगा हुस्न कार-ख़ाने से
आम होगा अब हमदम सब पे फ़ैज़ फ़ितरत का
भर सकेंगे अब दामन हम भी इस ख़ज़ाने से
मैं कि एक मेहनत-कश मैं कि तीरगी-दुश्मन
सुब्ह-ए-नौ इबारत है मेरे मुस्कुराने से
ख़ुद-कुशी ही रास आई देख बद-नसीबों को!
ख़ुद से भी गुरेज़ाँ हैं भाग कर ज़माने से
अब जुनूँ पे वो साअत आ पड़ी कि ऐ 'मजरूह'
आज ज़ख़्म-ए-सर बेहतर दिल पे चोट खाने से
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