आज कुछ कहने को थी शोख़ी-ए-तदबीर मिरी हँस पड़ी पास खड़ी थी कहीं तक़दीर मिरी टूटते ही से हुई दिल में कशाकश पैदा मेरी तख़रीब में पोशीदा थी ता'मीर मिरी हुर्रियत ज़ुल्मत-ए-ज़िंदाँ में जनम लेती है इन्क़िलाबात की तारीख़ है ज़ंजीर मिरी अपनी जानिब कभी देखा ही नहीं था वर्ना वुसअ'तें दोनों जहानों की हैं जागीर मिरी दोस्ती कैसी रह-ओ-रस्म-ए-उमूमी भी गई प्यार की बात कही आप से तक़्सीर मिरी मैं कहाँ आप कहाँ दीद की उम्मीद कहाँ याद आऊँ जो कभी देखिए तस्वीर मिरी इबरत-आमोज़ है दुनिया का तग़य्युर 'जामी' मुझ से मिलती नहीं दो रोज़ की तस्वीर मिरी