आँख बे-क़ाबू है दुनिया की तरह दिल है पहलू में तमन्ना की तरह कोई आवाज़ कोई गूँज नहीं वक़्त चुप-चाप है सहरा की तरह तू है इक फैलती बढ़ती ख़ुश्बू मैं हूँ इक शोला-ए-तन्हा की तरह तू मिरी राह में क्यूँ हाइल है एक उमडे हुए दरिया की तरह मुझ को मालूम नहीं था ऐ दोस्त तू भी बेगाना है दुनिया की तरह दूर उफ़ुक़-पार है शब पिछले-पहर कोई उभरा रुख़-ए-ज़ेबा की तरह शहर में चाँदनी बन कर उतरा छा गया नश्शा-ए-सहबा की तरह बस तिरे रंग-ए-हया की मानिंद हू-ब-हू तेरे सरापा की तरह अब कहाँ पाऊँगा मैं नक़्श-ए-'जमील' ढूँढता फिरता हूँ दरिया की तरह