आँख को धोका दिया आख़िर मिरी रफ़्तार ने और जा कर तोड़ डाला सुर्ख़ सिगनल कार ने चार पल के इक पड़ाव ने मिरी तक़्सीम की जिस्म खींचा मंज़िलों ने दिल सरा-ए-दार ने मैं खड़ा हूँ तो बराबर में खड़े हैं सब मिरे गिर पड़ूँ तो हर कोई दौड़ेगा मुझ को मारने मुस्कुरा कर खींच लेते हैं कोई तस्वीर हम इस से बढ़ कर क्या दिया है अब किसी तेहवार ने वक़्त की सीढ़ी पे चढ़ कर देखना है उस तरफ़ क्यों मिरी बीनाई को रोका है उस दीवार ने बिन तिरे सब ठीक है लेकिन मुझे इस शहर में लग गए हैं ऐसे वैसे लोग भी धुतकारने ज़िंदगी दर-अस्ल 'राशिद' दो घड़ी का खेल है कब जहाँ को छोड़ना चाहा किसी किरदार ने