आख़िरी मा'रका अब शहर-ए-धुआँ-धार में है
By ahmad-kamal-parwaziMay 24, 2024
आख़िरी मा'रका अब शहर-ए-धुआँ-धार में है
मेरे सिरहाने का पत्थर इसी दीवार में है
अब हमें पिछले हवाला नहीं देना पड़ते
इक यही फ़ाएदा बिगड़े हुए किरदार में है
बेशतर लोग जिसे 'उम्र-ए-रवाँ कहते हैं
वो तो इक शाम है और कूचा-ए-दिलदार में है
ये भी मुमकिन है कि लहजा ही सलामत न रहे
मज्लिस-ए-शहर भी अब शहर के बाज़ार में है
दिल कहाँ अपनी रियासत से अलग जाता है
वो तो अब भी उसी उजड़े हुए दरबार में है
मेरे सिरहाने का पत्थर इसी दीवार में है
अब हमें पिछले हवाला नहीं देना पड़ते
इक यही फ़ाएदा बिगड़े हुए किरदार में है
बेशतर लोग जिसे 'उम्र-ए-रवाँ कहते हैं
वो तो इक शाम है और कूचा-ए-दिलदार में है
ये भी मुमकिन है कि लहजा ही सलामत न रहे
मज्लिस-ए-शहर भी अब शहर के बाज़ार में है
दिल कहाँ अपनी रियासत से अलग जाता है
वो तो अब भी उसी उजड़े हुए दरबार में है
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