आती न अगर काम मिरे दर-ब-दरी भी

By ali-tasifJune 3, 2024
आती न अगर काम मिरे दर-ब-दरी भी
मैं तर्क न कर देता वहीं हम-सफ़री भी
हैरान हूँ दुनिया के तलब-गारों पे क्या क्या
भाती है भला किस को निरी दर्द-ए-सरी भी


नैरंगी-ए-दुनिया की ख़बर ख़ाक कि मुझ को
ख़ाली ही नज़र आती है बोतल ये भरी भी
क्या अब भी मिरी आह सर-ए-'अर्श न पहुँची
क्या फिर से गई साथ वही बे-असरी भी


इक मैं ही ख़बर-गीर नहीं हालत-ए-दिल का
हलकान तो रहती है बहुत बे-ख़बरी भी
फिर जा के कहीं ज़ख़्म गिना ज़ख़्म बराबर
आमादा हुई दाद पे जब बख़िया-गरी भी


हालाँकि मलँगों की तरह ज़ीस्त गुज़ारी
आसेब का साया भी रहा बद-नज़री भी
सुलझी ही नहीं रम्ज़-ओ-किनायात की गुत्थी
आती है नज़र ख़्वाब में ख़ुश्की भी तरी भी


मस्जूद-ए-मलाइक तो यक़ीनन था अभी तक
इंसान में होती न अगर जानवरी भी
क्या ये भी कोई बात है 'तासिफ़' कि हमेशा
ले जाए जुनूँ साथ लगा कर वो परी भी


94903 viewsghazalHindi