आवारा भटकता रहा पैग़ाम किसी का

By ain-tabishMay 29, 2024
आवारा भटकता रहा पैग़ाम किसी का
मक्तूब किसी और का था नाम किसी का
है एक ही लम्हा जो कहीं वस्ल कहीं हिज्र
तकलीफ़ किसी के लिए आराम किसी का


कुछ लोगों को रुख़्सत भी किया करती है ज़ालिम
रस्ता भी तका करती है ये शाम किसी का
इक क़हर हुआ करती है ये महफ़िल-ए-मय भी
जब होंट किसी और का हो जाम किसी का


मुद्दत हुई डूबे हुए ख़्वाबों का सफ़ीना
मौजों पे चमकता है मगर नाम किसी का
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