अब आ भी जाओ कि शाम-ओ-सहर खुले हुए हैं
By adnan-asarJanuary 18, 2025
अब आ भी जाओ कि शाम-ओ-सहर खुले हुए हैं
तुम्हारे वास्ते आँखों के दर खुले हुए हैं
वो माहताब अभी तक नहीं खुला हम पर
अभी तो रंग बहुत मुख़्तसर खुले हुए हैं
खुले हुए हैं जहानों के दर उसी जानिब
तिरे जमाल के दफ़्तर जिधर खुले हुए हैं
तू मेरे सामने आया तो ऐसे लगता है
हज़ारों आइने पेश-ए-नज़र खुले हुए हैं
उन्हें समझने में ये मसअला भी है दरपेश
वो लोग मुझ पे बहुत मुख़्तसर खुले हुए हैं
उठा रहा हूँ मैं लज़्ज़त सफ़र की हर लम्हा
मिरे वुजूद पे कितने सफ़र खुले हुए हैं
सज़ाएँ सहने से डरते नहीं हैं अहल-ए-जुनूँ
हमारी जान पे वहशत के दर खुले हुए हैं
क़फ़स से देख रहे हैं बस आसमाँ 'अदनान'
परिंद क़ैद हैं और बाल-ओ-पर खुले हुए हैं
वो मेरे पास भी है और पास है भी नहीं
तज़ाद कैसे ये ‘अदनान-असर' खुले हुए हैं
तुम्हारे वास्ते आँखों के दर खुले हुए हैं
वो माहताब अभी तक नहीं खुला हम पर
अभी तो रंग बहुत मुख़्तसर खुले हुए हैं
खुले हुए हैं जहानों के दर उसी जानिब
तिरे जमाल के दफ़्तर जिधर खुले हुए हैं
तू मेरे सामने आया तो ऐसे लगता है
हज़ारों आइने पेश-ए-नज़र खुले हुए हैं
उन्हें समझने में ये मसअला भी है दरपेश
वो लोग मुझ पे बहुत मुख़्तसर खुले हुए हैं
उठा रहा हूँ मैं लज़्ज़त सफ़र की हर लम्हा
मिरे वुजूद पे कितने सफ़र खुले हुए हैं
सज़ाएँ सहने से डरते नहीं हैं अहल-ए-जुनूँ
हमारी जान पे वहशत के दर खुले हुए हैं
क़फ़स से देख रहे हैं बस आसमाँ 'अदनान'
परिंद क़ैद हैं और बाल-ओ-पर खुले हुए हैं
वो मेरे पास भी है और पास है भी नहीं
तज़ाद कैसे ये ‘अदनान-असर' खुले हुए हैं
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