अब भी ख़ामोश अगर हो तो कहाँ बोलोगे

By adnan-asarJanuary 18, 2025
अब भी ख़ामोश अगर हो तो कहाँ बोलोगे
मुझ को लगता नहीं तुम हक़ की ज़बाँ बोलोगे
वक़्त के साथ ये लुक्नत भी चली जाएगी
नाम आया वो ज़बाँ पर तो रवाँ बोलोगे


तुम को हो जाएगी जिस रोज़ मोहब्बत ख़ुद से
मैं न कहता था कि तुम ख़ुद को जवाँ बोलोगे
ख़िल्क़त-ए-शहर सुनेगी ये तुम्हारी बातें
ख़ुद ही बन जाएगा माहौल जहाँ बोलोगे


साहिब-ए-‘इल्म अगर हो तो किसी जाहिल से
बात करने को भी लम्हों का ज़ियाँ बोलोगे
और तो कुछ नहीं बस लोग हँसेंगे तुम पर
ठहरे पानी को अगर आब-ए-रवाँ बोलोगे


ऐ मिरे दोस्त मुझे तुम से ये उम्मीद न थी
तुम मिरे सामने दुश्मन की ज़बाँ बोलोगे
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