अब चराग़ों में ज़िंदगी कम है दिल जलाओ कि रौशनी कम है ताब-ए-नज़्ज़ारा है वही लेकिन उन के जल्वों में दिलकशी कम है बदला बदला मिज़ाज है उस का उस की बातों में चाशनी कम है कैफ़-ओ-मस्ती सुरूर क्या मा'नी ज़िंदगी में भी अब ख़ुशी कम है वक़्त ने भर दिए हैं ज़ख़्म 'मजीद' अपनी आँखों में अब नमी कम है