'अबस है पेश-ए-अर्बाब-ए-सुख़न अज़्म-ए-सुख़न मुझ को
By abbas-ali-khan-bekhudApril 22, 2024
'अबस है पेश-ए-अर्बाब-ए-सुख़न अज़्म-ए-सुख़न मुझ को
वफ़ा कहने न देगी क़िस्सा-ए-रंज-ओ-मेहन मुझ को
क़फ़स में मिल गया है इन दिनों कुछ लुत्फ़ ही ऐसा
कि भूले से नहीं आती कभी याद-ए-चमन मुझ को
ख़िज़ाँ की आफ़तें फिरती हैं अब तक मेरी नज़रों में
बहार-ए-चंद-रोज़ा क्या दिखाता है चमन मुझ को
बुत-ए-तर्रार से जब शिकवा-ए-बेदाद करता हूँ
सुनाता है वो ज़ालिम सर-गुज़श्त-ए-कोहकन मुझ को
वो हँस कर देख लेते हैं जो कूचे से गुज़रता हूँ
मुबारकबाद 'बेख़ुद' मेरा ये दीवाना-पन मुझ को
वफ़ा कहने न देगी क़िस्सा-ए-रंज-ओ-मेहन मुझ को
क़फ़स में मिल गया है इन दिनों कुछ लुत्फ़ ही ऐसा
कि भूले से नहीं आती कभी याद-ए-चमन मुझ को
ख़िज़ाँ की आफ़तें फिरती हैं अब तक मेरी नज़रों में
बहार-ए-चंद-रोज़ा क्या दिखाता है चमन मुझ को
बुत-ए-तर्रार से जब शिकवा-ए-बेदाद करता हूँ
सुनाता है वो ज़ालिम सर-गुज़श्त-ए-कोहकन मुझ को
वो हँस कर देख लेते हैं जो कूचे से गुज़रता हूँ
मुबारकबाद 'बेख़ुद' मेरा ये दीवाना-पन मुझ को
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