अभी वो राब्ता टूटा नहीं है मुसलसल हाल जो पूछा नहीं है बता दूँ ज़ीस्त उस की फ़िक्र में ही मगर अफ़्सोस वो रिश्ता नहीं है किसी सहरा में डूबी हूँ कहीं मैं किसी से अब मुझे ख़तरा नहीं है दिए दुनिया ने कितने ज़ख़्म मुझ को मगर आँखों में इक क़तरा नहीं है हमारे पास बस तुम ही नहीं हो वगर्ना पास जानाँ क्या नहीं है