अभी ज़मीन को हफ़्त आसमाँ बनाना है

By akbar-hameediOctober 27, 2024
अभी ज़मीन को हफ़्त आसमाँ बनाना है
इसी जहाँ को मुझे दो-जहाँ बनाना है
भटक रहा है अकेला जो कोह-ओ-सहरा में
उस एक आदमी को कारवाँ बनाना है


ये शाख़-ए-गुल जो घिरी है हज़ार काँटों में
मुझे इसी से नया गुलसिताँ बनाना है
मैं जानता हूँ मुझे क्या बनाना है लेकिन
वहाँ बनाने से पहले यहाँ बनाना है


चराग़ ले के उसे शहर शहर ढूँढता हूँ
बस एक शख़्स मुझे राज़-दाँ बनाना है
हमें भी उम्र-गुज़ारी तो करनी है 'अकबर'
उन्हें भी मश्ग़ला-ए-दिल-बराँ बनाना है


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