अदब को इतना गिरा रहे हो कोई सुनेगा तो क्या कहेगा
By aalam-nizamiApril 20, 2024
अदब को इतना गिरा रहे हो कोई सुनेगा तो क्या कहेगा
सुख़न की 'अज़्मत घटा रहे हो कोई सुनेगा तो क्या कहेगा
दियों का नाम-ओ-निशाँ मिटा कर तुम उन का ख़ून-ए-जिगर मिला कर
चराग़ अपना जला रहे हो कोई सुनेगा तो क्या कहेगा
हमेशा जिस ने समाज में की तुम्हारे 'ऐबों की पर्दा-पोशी
उसी पे तोहमत लगा रहे हो कोई सुनेगा तो क्या कहेगा
है घर में जिस से ख़ुदा की रहमत है जिस के क़दमों के नीचे जन्नत
उसी को ज़हमत बता रहे हो कोई सुनेगा तो क्या कहेगा
जिन्हों ने तुम को जनम दिया है पढ़ा लिखा कर बड़ा किया है
उन्हें ही आँखें दिखा रहे हो कोई सुनेगा तो क्या कहेगा
है जिन से शाख़-ए-वफ़ा महकती है जिन के ख़ूँ में वतन-परस्ती
उन्हें फ़सादी बता रहे हो कोई सुनेगा तो क्या कहेगा
मोहब्बतों के गुलाब तुम पर हमेशा हम ने किए निछावर
हमीं पे नश्तर चला रहे हो कोई सुनेगा तो क्या कहेगा
मसर्रतों के दिए जला कर ज़रूरतों का गला दबा कर
ग़मों को 'आलम' छुपा रहे हो कोई सुनेगा तो क्या कहेगा
सुख़न की 'अज़्मत घटा रहे हो कोई सुनेगा तो क्या कहेगा
दियों का नाम-ओ-निशाँ मिटा कर तुम उन का ख़ून-ए-जिगर मिला कर
चराग़ अपना जला रहे हो कोई सुनेगा तो क्या कहेगा
हमेशा जिस ने समाज में की तुम्हारे 'ऐबों की पर्दा-पोशी
उसी पे तोहमत लगा रहे हो कोई सुनेगा तो क्या कहेगा
है घर में जिस से ख़ुदा की रहमत है जिस के क़दमों के नीचे जन्नत
उसी को ज़हमत बता रहे हो कोई सुनेगा तो क्या कहेगा
जिन्हों ने तुम को जनम दिया है पढ़ा लिखा कर बड़ा किया है
उन्हें ही आँखें दिखा रहे हो कोई सुनेगा तो क्या कहेगा
है जिन से शाख़-ए-वफ़ा महकती है जिन के ख़ूँ में वतन-परस्ती
उन्हें फ़सादी बता रहे हो कोई सुनेगा तो क्या कहेगा
मोहब्बतों के गुलाब तुम पर हमेशा हम ने किए निछावर
हमीं पे नश्तर चला रहे हो कोई सुनेगा तो क्या कहेगा
मसर्रतों के दिए जला कर ज़रूरतों का गला दबा कर
ग़मों को 'आलम' छुपा रहे हो कोई सुनेगा तो क्या कहेगा
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