अफ़्सुर्दगी निकले न जब अफ़्सुर्दा दिलों से

By nand-kishore-anhadFebruary 27, 2024
अफ़्सुर्दगी निकले न जब अफ़्सुर्दा दिलों से
बचने की फिर इक राह निकालेंगे रगों से
सुनते हैं फिर इक रोज़ सुनाई नहीं देती
ये चीख़ने चिल्लाने की आवाज़ घरों से


उस दिल में मगर दाख़िला मुमकिन नहीं मेरा
मुमकिन है निकल आएँ दिवारें ही दरों से
हर 'इश्क़ को होती है नई सुब्ह से कुछ राह
हर हिज्र का रहता है कोई बैर शबों से


दरपेश उन आँखों के जिन्हें होश था 'अनहद'
आबाद हैं मयख़ाने इन्हीं बे-अदबों से
99389 viewsghazalHindi