अगर हो ग़म की गहराई से मिलना

By tuaqeer-chughtaiMarch 1, 2024
अगर हो ग़म की गहराई से मिलना
तो आ के मेरी तन्हाई से मिलना
उसे मिलना तो यूँ मिलना कि जैसे
किसी पस्ती का ऊँचाई से मिलना


वो मुझ से बार-हा ऐसे मिला है
महक का जैसे पुरवाई से मिलना
बहुत ही ज़ो'म है क़ौस-ए-क़ुज़ह गर
तो जा के उस की अंगड़ाई से मिलना


वो कमसिन है मगर सब जानता है
अगर मिलना तो दानाई से मिलना
तुम्हारे ग़म में घुलता जा रहा है
कभी 'तौक़ीर-चुग़्ताई’ से मिलना


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