अगर कोई ख़लिश-ए-जावेदाँ सलामत है

By mahtab-haider-naqviNovember 4, 2020
अगर कोई ख़लिश-ए-जावेदाँ सलामत है
तो फिर जहाँ में ये तर्ज़-ए-फ़ुग़ाँ सलामत है
अभी तो बिछड़े हुए लोग याद आएँगे
अभी तो दर्द-ए-दिल-ए-राएगाँ सलामत है


अगरचे इस के न होने से कुछ नहीं होता
हमारे सर पे मगर आसमाँ सलामत है
सभी को शौक़-ए-शहादत तो हो गया है मगर
किसी के दोश पे सर ही कहाँ सलामत है


हमारे सीने के ये ज़ख़्म भर गए हैं तो क्या
उदू के तीर उदू की कमाँ सलामत है
जहाँ में रंज-ए-सफ़र हम भी खींचते हैं मगर
जो गुम हुआ है वही कारवाँ सलामत है


35214 viewsghazalHindi