अगरचे तेरे करम का कोई शुमार नहीं मगर ये जब्र मुझे ख़ुद पे इख़्तियार नहीं हुदूद-ए-वक़्त से बाहर निकल के देख लिया कहाँ कहाँ तिरी क़ुदरत तिरा हिसार नहीं मैं एक ज़र्रा सही मेरी हैसियत मा'लूम मैं आदमी तो हूँ उड़ता हुए ग़ुबार नहीं सभी के बज़्म-ए-तरब में शुमार नाम मगर प मेरा नाम किसी नाम में शुमार नहीं ये लग रहा है मुझे रंग-ओ-बू के ज़ीने पर मैं जिस बहार में हूँ ये कोई बहार नहीं किसी ने फिर से गिरा दी है ये दर-ओ-दीवार उठो 'अदीब' यहाँ और इंतिज़ार नहीं