एहसासात की बस्ती में जब हर जानिब इक सन्नाटा था

By balbir-rathiOctober 28, 2020
एहसासात की बस्ती में जब हर जानिब इक सन्नाटा था
मैं आवाज़ों के जंगल में तब जाने क्या ढूँड रहा था
जिन राहों से अपने दिल का हर क़िस्सा मंसूब रहा है
अब तो ये भी याद नहीं है उन राहों का क़िस्सा क्या था


आज उसी के अफ़्सानों का महफ़िल महफ़िल चर्चा होगा
कल चौराहे पर तन्हा जो शख़्स बहुत ख़ामोश खड़ा था
यूँ जीवन रस कब देता है फिर से अपने ज़ख़्म कुरेदो
तुम ने आख़िर क्या सोचा था दर्द से क्यूँ सन्यास लिया था


ऐसी कोई बात नहीं थी उन राहों से लौट भी आते
लेकिन उन राहों पे किसी ने कुछ दिन अपना साथ दिया था
इस नगरी में लग-भग सब ने एक तरह से चोटें खाईं
लेकिन ज़ख़्मों को सहलाने का सब का अंदाज़ा जुदा था


तुम उन बेगानी राहों में आख़िर किस को ढूँड रहे हो
वो तो कब का लौट चुका है कल जो तुम्हारे साथ चला था
62942 viewsghazalHindi