ऐ ज़िंदगी बस और नहीं बस सकत नहीं
By ali-tasifJune 3, 2024
ऐ ज़िंदगी बस और नहीं बस सकत नहीं
इस दिल को संग-ए-राह की सूरत बरत नहीं
रुक जाए नब्ज़ फ़िक्र के रुकते ही काएनात
अब तक तो मेरी ख़ाक में ऐसी सिफ़त नहीं
भरती का एक मैं ही बचा था निकल गया
अब तेरा शे'र साफ़ है कोई भरत नहीं
क्यों नक़्द बेचने पे ब-ज़िद हो तुम अपनी बात
हालाँकि अब उधार में इस की खपत नहीं
अब सोचने लगा हूँ बढ़ा दूँ दुकान-ए-शौक़
फ़िल-वक़्त ऐसे काम में कोई बचत नहीं
नाद-ए-‘अली के विर्द को तार-ए-नफ़स से जोड़
अब ज़िंदगी गुज़ार मिरी जाँ भुगत नहीं
इस दिल को संग-ए-राह की सूरत बरत नहीं
रुक जाए नब्ज़ फ़िक्र के रुकते ही काएनात
अब तक तो मेरी ख़ाक में ऐसी सिफ़त नहीं
भरती का एक मैं ही बचा था निकल गया
अब तेरा शे'र साफ़ है कोई भरत नहीं
क्यों नक़्द बेचने पे ब-ज़िद हो तुम अपनी बात
हालाँकि अब उधार में इस की खपत नहीं
अब सोचने लगा हूँ बढ़ा दूँ दुकान-ए-शौक़
फ़िल-वक़्त ऐसे काम में कोई बचत नहीं
नाद-ए-‘अली के विर्द को तार-ए-नफ़स से जोड़
अब ज़िंदगी गुज़ार मिरी जाँ भुगत नहीं
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