आज़माने ज़ीस्त की जब तल्ख़ियाँ आ जाएँगी रू-ब-रू सारी हमारी ख़ामियाँ आ जाएँगी शर्त ये है आप के हाथों सजाएँ गुल-दान में फूल काग़ज़ के भी हों तो तितलियाँ आ जाएँगी बे-ज़बाँ रहने का सारा लुत्फ़ ही खो जाएगा ज़द में आवाज़ों के जब ख़ामोशियाँ आ जाएँगी सूख जाएँगे समुंदर जब भी बाहर के कभी घर में मेरे हसरतों की मछलियाँ आ जाएँगी चिलचिलाती धूप में वो जब भी आएँगे नज़र एक पल में शहर में फिर सर्दियाँ आ जाएँगी आँख में महबूब की शिद्दत से देखो झाँक कर शाइ'री की सब तुम्हें बारीकियाँ आ जाएँगी याद कर के वस्ल के पल काट लेंगे ज़िंदगी दरमियाँ जब भी हमारे दूरियाँ आ जाएँगी अस्ल में तो तब ही होगा 'शोख़ उस का इम्तिहाँ सामने जब प्यार के मजबूरियाँ आ जाएँगी