'अख़्तर' को तो रीए में भी है 'आर क्या करे

By akhtar-saeedJune 1, 2024
'अख़्तर' को तो रीए में भी है 'आर क्या करे
बैठा हुआ है देर से बे-कार क्या करे
यक हुजूम-ए-दर्द और और ई तमाम
दिल ज़ेर पर लगाए है मिंक़ार क्या करे


तारीख़ कि रही है कि मिटता नहीं है ज़ुल्म
मुख़्तार-ए-कुल बता तिरा संसार क्या करे
खींचे है सब को दस्त-ए-फ़ना एक सा तो फिर
एक सादा-लौह करे यहाँ 'अय्यार क्या करे


कोई नहीं है मुझ को हुनर रोज़गार का
जुज़ ख़ाकसार मिदहत-ए-सरकार क्या करे
जो सारी काएनात की फ़ितरत का हो अमीं
हर तज्रबे का जो हो ख़रीदार क्या करे


जी मुज़्तरिब है हिद्दत‌‌‌‌-ए-कील-ओ-मक़ाल में
ढूँडे है कोई साया-ए-दीवार क्या करे
शहरों में मेरी ख़ाक अड़े मिस्ल-ए-बू-ए-गुल
बे-शामा है ख़ल्क़-ए-तरह-दार क्या करे


मौला मदद कि मैं हूँ अज़ादार-ए-आल-ए-ऊ
आक़ा तिरे बग़ैर गुनहगार क्या करे
36385 viewsghazalHindi