अमल अच्छा नहीं उस का जो डरता जाए है मुझ से

By raheemullah-shadJanuary 27, 2022
अमल अच्छा नहीं उस का जो डरता जाए है मुझ से
वो काफ़िर जो ख़ुदा को भी न सौंपा जाए है मुझ से
ये लुक़्मा है अजल का या तिरे हाथों का बीड़ा है
न उगला जाए है मुझ से न निगला जाए है मुझ से


कभी हिम्मत-शिकन तूफ़ाँ कभी साहिल का नज़्ज़ारा
न डूबा जाए है मुझ से न तैरा जाए है मुझ से
अदू के साथ तेरी दिल-लगी भी इक अजब शय है
न रोका जाए है मुझ से न देखा जाए है मुझ से


कभी तन्हाई में वो गुफ़्तुगू मुझ से लगावट की
सर-ए-बाज़ार मिल जाए तो अकड़ा जाए है मुझ से
वजूद-ए-आलम-ए-फ़ानी में ये आसानियाँ कैसी
ख़ुदा का घर है दिल नज़दीक होता जाए है मुझ से


अगर मैं देखता हूँ इस बयाबान-ए-चमन को 'शाद'
कोई मंज़र अचानक दूर होता जाए है मुझ से
40551 viewsghazalHindi