अंदाज़ कहीं देखा है मस्ताना किसी का
By nawab-umrao-bahadur-dilerApril 5, 2022
अंदाज़ कहीं देखा है मस्ताना किसी का
शैदा ही हुआ फिर दिल-ए-दीवाना किसी का
साक़ी निगह-ए-मस्त से तेरी जो लड़े आँख
सरशार न क्यों कर रहे पैमाना किसी का
मस्कन है ख़राबी का तबाही का ठिकाना
दिल से मिरे बढ़ कर नहीं वीराना किसी का
हूरों में न ये नाज़ न परियों में ये अंदाज़
पाते हैं चलन सब से जुदागाना किसी का
कहते हैं रक़ीबों से वो सुन कर मिरे अशआ'र
मज़मूँ हमें ख़ुश आता है रिंदाना किसी का
कुछ बिन्त-ए-इनब पर तिरा क़ब्ज़ा नहीं वाइज़
ठेके में नहीं है तिरे मय-ख़ाना किसी का
भेजा है सू-ए-मय-कदा जो अब्र ख़ुदा ने
मक़्बूल हुआ ना'रा-ए-मस्ताना किसी का
याद आता है क्या क्या तलब-ए-बोसा-ए-लब पर
मुँह फेर के घुँघट में वो शर्माना किसी का
ज़िक्र-ए-शब-ए-ग़म सुन के 'दिलेर' उन का भी कहना
हम नींद में सुनते नहीं अफ़्साना किसी का
शैदा ही हुआ फिर दिल-ए-दीवाना किसी का
साक़ी निगह-ए-मस्त से तेरी जो लड़े आँख
सरशार न क्यों कर रहे पैमाना किसी का
मस्कन है ख़राबी का तबाही का ठिकाना
दिल से मिरे बढ़ कर नहीं वीराना किसी का
हूरों में न ये नाज़ न परियों में ये अंदाज़
पाते हैं चलन सब से जुदागाना किसी का
कहते हैं रक़ीबों से वो सुन कर मिरे अशआ'र
मज़मूँ हमें ख़ुश आता है रिंदाना किसी का
कुछ बिन्त-ए-इनब पर तिरा क़ब्ज़ा नहीं वाइज़
ठेके में नहीं है तिरे मय-ख़ाना किसी का
भेजा है सू-ए-मय-कदा जो अब्र ख़ुदा ने
मक़्बूल हुआ ना'रा-ए-मस्ताना किसी का
याद आता है क्या क्या तलब-ए-बोसा-ए-लब पर
मुँह फेर के घुँघट में वो शर्माना किसी का
ज़िक्र-ए-शब-ए-ग़म सुन के 'दिलेर' उन का भी कहना
हम नींद में सुनते नहीं अफ़्साना किसी का
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