अपने अल्फ़ाज़-ओ-म'आनी से निकल आया है
By akram-jazibJune 1, 2024
अपने अल्फ़ाज़-ओ-म'आनी से निकल आया है
वो कहानी की रवानी से निकल आया है
खींच लाई है हमें चाँदनी शब में ख़ुशबू
साँप भी रात की रानी से निकल आया है
ख़ुद को रू-पोश किया कितने ही किरदारों में
फिर भी फ़नकार कहानी से निकल आया है
जाग उट्ठी है तड़प दूर चले जाने से
रास्ता नक़्ल-ए-मकानी से निकल आया है
फूट बहने लगे ठोकर से फफोले दिल के
दर्द एहसास के पानी से निकल आया है
तज्रबे बाँध के गठड़ी में रखे काँधों पर
इक बुढ़ापा भी जवानी से निकल आया है
हिकमतें फ़िक्र-ओ-तदब्बुर में रखी हैं 'जाज़िब'
फ़ल्सफ़ा शो'ला-बयानी से निकल आया है
वो कहानी की रवानी से निकल आया है
खींच लाई है हमें चाँदनी शब में ख़ुशबू
साँप भी रात की रानी से निकल आया है
ख़ुद को रू-पोश किया कितने ही किरदारों में
फिर भी फ़नकार कहानी से निकल आया है
जाग उट्ठी है तड़प दूर चले जाने से
रास्ता नक़्ल-ए-मकानी से निकल आया है
फूट बहने लगे ठोकर से फफोले दिल के
दर्द एहसास के पानी से निकल आया है
तज्रबे बाँध के गठड़ी में रखे काँधों पर
इक बुढ़ापा भी जवानी से निकल आया है
हिकमतें फ़िक्र-ओ-तदब्बुर में रखी हैं 'जाज़िब'
फ़ल्सफ़ा शो'ला-बयानी से निकल आया है
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