अपने ही लोग अपने नगर अजनबी लगे
By qaisar-abbasNovember 12, 2020
अपने ही लोग अपने नगर अजनबी लगे
वापस गए तो घर की हर इक शय नई लगे
ख़ानों में बट चुकी थी समुंदर की वुसअतें
दरिया मोहब्बतों के सिमटती नदी लगे
रातों की भेंट चढ़ गए वो चाँद जैसे लोग
तारीकियों के देव जिन्हें काग़ज़ी लगे
सोना समेटती थी जहाँ खेतियों में धूप
वो फ़स्ल मेरे गाँव की ख़ाशाक सी लगे
रावी की शाम सिंध की निखरी हुई सहर
काम आ सके तो उन को मिरी ज़िंदगी लगे
'क़ैसर' दिलों के फ़ासले ऐसे न थे कभी
दो गाम तय करूँ तो मुझे इक सदी लगे
वापस गए तो घर की हर इक शय नई लगे
ख़ानों में बट चुकी थी समुंदर की वुसअतें
दरिया मोहब्बतों के सिमटती नदी लगे
रातों की भेंट चढ़ गए वो चाँद जैसे लोग
तारीकियों के देव जिन्हें काग़ज़ी लगे
सोना समेटती थी जहाँ खेतियों में धूप
वो फ़स्ल मेरे गाँव की ख़ाशाक सी लगे
रावी की शाम सिंध की निखरी हुई सहर
काम आ सके तो उन को मिरी ज़िंदगी लगे
'क़ैसर' दिलों के फ़ासले ऐसे न थे कभी
दो गाम तय करूँ तो मुझे इक सदी लगे
18719 viewsghazal • Hindi