अपने ही लोग अपने नगर अजनबी लगे

By qaisar-abbasNovember 12, 2020
अपने ही लोग अपने नगर अजनबी लगे
वापस गए तो घर की हर इक शय नई लगे
ख़ानों में बट चुकी थी समुंदर की वुसअतें
दरिया मोहब्बतों के सिमटती नदी लगे


रातों की भेंट चढ़ गए वो चाँद जैसे लोग
तारीकियों के देव जिन्हें काग़ज़ी लगे
सोना समेटती थी जहाँ खेतियों में धूप
वो फ़स्ल मेरे गाँव की ख़ाशाक सी लगे


रावी की शाम सिंध की निखरी हुई सहर
काम आ सके तो उन को मिरी ज़िंदगी लगे
'क़ैसर' दिलों के फ़ासले ऐसे न थे कभी
दो गाम तय करूँ तो मुझे इक सदी लगे


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