अपने जीने को क्या पूछो सुब्ह भी गोया रात रही

By sajjad-baqar-rizviNovember 15, 2020
अपने जीने को क्या पूछो सुब्ह भी गोया रात रही
तुम भी रूठे जग भी रूठा ये भी वक़्त की बात रही
प्यार के खेल में दिल के मालिक हम तो सब कुछ खो बैठे
अक्सर तुम से शर्त लगी है अक्सर अपनी मात रही


लाख दिए दुनिया ने चरके लाख लगे दिल पर पहरे
हुस्न ने लाखों चालें बदलीं लेकिन इश्क़ की घात रही
तुम क्या समझे तुम से छुट कर हाथ भला हम क्यूँ मलते
चश्म-ओ-दिल के शग़्ल को अक्सर अश्कों की बरसात रही


तुम से दो दो बात की ख़ातिर हम आगे बढ़ आए थे
पीछे पीछे साथ हमारे तल्ख़ी-ए-लम्हात रही
ठंडी ठंडी आह की ख़ुश्बू नर्म ओ गर्म अश्कों के हार
सच पूछो तो अपनी सारी ज़ीस्त की ये सौग़ात रही


कैसे सुब्ह को शाम करूँगा कैसे कटेंगे उम्र के दिन
सोच रहा हूँ अब जो यही बे-चारगी-ए-हालात रही
54596 viewsghazalHindi