अपनी आँखों से तबाही ये नज़ारा देखूँ
By aadil-rahiSeptember 7, 2024
अपनी आँखों से तबाही ये नज़ारा देखूँ
या'नी तुझ को मैं किसी और का होता देखूँ
मेरी दीवानगी इस मोड़ पे ले आई है
हर किसी चेहरे में बस एक ही चेहरा देखूँ
ये जो तस्वीर मुसव्विर ने बनाई वर्ना
चाँद को ठहरे हुए पानी में चलता देखूँ
तिश्नगी लाख सही पर ये नहीं हो सकता
ख़ुद को लाचार बनाऊँ सू-ए-दरिया देखूँ
ये तिरी ज़िद कि तड़पता हुआ देखे मुझ को
मेरी ख़्वाहिश कि हमेशा तुझे हँसता देखूँ
सामने तुझ को बिठाऊँ तिरा माथा चूमूँ
तेरी आँखें तिरी ज़ुल्फ़ें तिरा चेहरा देखूँ
दो क़दम चल के ये दिल ने कहा 'आदिल-राही'
आख़िरी बार पलट कर उसे जाता देखूँ
या'नी तुझ को मैं किसी और का होता देखूँ
मेरी दीवानगी इस मोड़ पे ले आई है
हर किसी चेहरे में बस एक ही चेहरा देखूँ
ये जो तस्वीर मुसव्विर ने बनाई वर्ना
चाँद को ठहरे हुए पानी में चलता देखूँ
तिश्नगी लाख सही पर ये नहीं हो सकता
ख़ुद को लाचार बनाऊँ सू-ए-दरिया देखूँ
ये तिरी ज़िद कि तड़पता हुआ देखे मुझ को
मेरी ख़्वाहिश कि हमेशा तुझे हँसता देखूँ
सामने तुझ को बिठाऊँ तिरा माथा चूमूँ
तेरी आँखें तिरी ज़ुल्फ़ें तिरा चेहरा देखूँ
दो क़दम चल के ये दिल ने कहा 'आदिल-राही'
आख़िरी बार पलट कर उसे जाता देखूँ
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