अपनी छलकती आँख के तारे गवाह हैं

By abdul-matin-jamiSeptember 26, 2021
अपनी छलकती आँख के तारे गवाह हैं
अश्कों में डूबे शब के नज़ारे गवाह हैं
सूखा है मेरे जिस्म में कितना लहू न पूछ
हालात के सुलगते शरारे गवाह हैं


हम ने ही रूह फूंकी थी दश्त-ए-ख़याल में
फ़ितरत के ये हसीन इशारे गवाह हैं
सोते हैं मेरी फ़िक्र के अब तक रवाँ-दवाँ
बहर-ए-वजूद के ये किनारे गवाह हैं


मेरी उड़ान तारों के बिल्कुल क़रीब थी
इल्म-ओ-हुनर के सारे ग़ुब्बारे गवाह हैं
'जामी' ने भी उरूज के देखे हैं रोज़-ओ-शब
अज़्मत के वो तमाम मनारे गवाह हैं


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