अक़दार-ए-कुहन हाथ से जाने नहीं देता

By irfan-aazmiFebruary 6, 2024
अक़दार-ए-कुहन हाथ से जाने नहीं देता
घर उस के चले जाओ तो आने नहीं देता
मिलता है मगर हाथ मिलाने नहीं देता
दीवार तकल्लुफ़ की गिराने नहीं देता


मा'लूम नहीं मुझ से वो ख़ुश है कि ख़फ़ा है
चेहरे पे कोई रंग ही आने नहीं देता
तौहीन-ए-‘अदालत की सज़ा उस को मिली है
जो 'अद्ल को सूली पे चढ़ाने नहीं देता


तारिक़ की क़यादत के तलबगार तो सब हैं
कश्ती ही कोई आज जलाने नहीं देता
आसाँ तो यही है कि उठो शहर जलाओ
जंगल में कोई आग लगाने नहीं देता


उस शख़्स से फल की कोई उम्मीद रखे क्या
जो पेड़ के पत्ते भी उठाने नहीं देता
'इरफ़ान' मिरे शहर की गलियाँ हैं बहुत तंग
दीवार कोई अपनी गिराने नहीं देता


75784 viewsghazalHindi