अश्क आँखों में छुपा लेता हूँ मैं

By surender-shajarNovember 22, 2020
अश्क आँखों में छुपा लेता हूँ मैं
ग़म छुपाने के लिए हँसता हूँ मैं
शर्म आती थी कभी तुझ से मुझे
ज़िंदगी अब ख़ुद से शर्मिंदा हूँ मैं


मुद्दतों से आईना देखा नहीं
कोई बतलाए मुझे कैसा हूँ मैं
ग़म ख़ुशी वहशत परेशानी सकूँ
सैकड़ों चेहरों का इक चेहरा हूँ मैं


है मुझी में हम-नफ़स मेरा कोई
साँस वो लेता है और ज़िंदा हूँ मैं
इतने खाए हैं सराबों से फ़रेब
सामने दरिया है और प्यासा हूँ मैं


याद आया है मुझे इक हम-सफ़र
जब कभी इस राह से गुज़रा हूँ मैं
चार जानिब एक सन्नाटा सुकूत
ग़ालिबन बस्ती में अब तन्हा हूँ मैं


मुझ को छूने का न कर अरमाँ 'शजर'
तो मुझे महसूस कर कैसा हूँ मैं
88647 viewsghazalHindi