और कुछ याद नहीं अब से न तब से पूछो मेरी आँखों से लहू बहता है कब से पूछो लम्हे लम्हे में हुआ जाता हूँ रेज़ा रेज़ा वजह कुछ मुझ से न पूछो मिरे रब से पूछो वो तो सूरज है हर इक बात का शोला है जवाब रू-ब-रू आ के कहो या कि अक़ब से पूछो याद है क़िस्सा-ए-ग़म का मुझे हर लफ़्ज़ अभी हाल जिस दर्द का जिस रंज का जब से पूछो तय हवा कैसे अंधेरों के समुंदर का सफ़र ग़ाज़ा-ए-सुब्ह से क्या चादर-ए-शब से पूछो ज़ख़्म देखो मिरे तलवों के न चेहरे का ग़ुबार मुझ पे क्या गुज़री है ये राह-ए-तलब से पूछो कितने सहरा कि सिमट आए हैं सीने में मिरे तिश्नगी मेरी न सूखे हुए लब से पूछो यूँ न हर चेहरे पे अब डालो सवाली नज़रें उस के कूचे का पता तुम तो न सब से पूछो मुझ से क्या पूछते हो सारे ही लम्हों का हिसाब मिल के जिस मोड़ से हम बिछड़े हैं तब से पूछो हर्फ़-ए-हक़ कहने में क्या क्या न हुए हम पे सितम पूछना ही है तो बू-जहल ओ लहब से पूछो जुम्बिश-ए-लब की तुम्हें भी है इजाज़त 'अंजुम' बात जो पूछो बहर-हाल अदब से पूछो