और तड़पाए मुझे दर्द-ए-जिगर आज की रात कल वो आएँगे नहीं आए अगर आज की रात ख़ुद-बख़ुद कम है मिरा दर्द-ए-जिगर आज की रात कौन आएगा इलाही मिरे घर आज की रात उल्टे देता है नक़ाब-ए-रुख़-ए-रौशन कोई शाम ही से हुई जाती है सहर आज की रात मैं जो बेताब गया बज़्म में तो वो बोले ख़ैर है ख़ैर है आ निकले किधर आज की रात दर-ए-मय-ख़ाना अगर बंद है मस्जिद को चलो मय-कशो पड़ रहो अल्लाह के घर आज की रात हाँ ज़रा चौंक तो एण्ड एण्ड के सोने वाले ले किसी आशिक़-ए-मुज़्तर की ख़बर आज की रात एक मुद्दत से जिसे ढूँड रही थीं आँखें आने वाला है वही रश्क-ए-क़मर आज की रात सुब्ह होते तिरे बीमार का दम निकलेगा है ये मेहमाँ सिफ़त-ए-शम-ए-सहर आज की रात दर्द-ए-दिल तू ने हमें मार ही डाला होता वो कलेजे से लगाते न अगर आज की रात कोई सोता है कहीं साथ किसी के शायद दिल के हमराह तड़पता है जिगर आज की रात तुम तो मर जाओगे दम भर में तड़प के 'नौशाद' दूर-अज़-हाल वो आए न अगर आज की रात