बात भी उन से कर नहीं आती आँख भी अपनी भर नहीं आती मौत आती है दहर में सब को आशिक़ों को मगर नहीं आती जान तो अपनी आ गई लब पर कोई उन की ख़बर नहीं आती मय से भी ग़म ग़लत नहीं होता तब्अ' अब मौज पर नहीं आती ना-उमीदी की अब ये सूरत है कोई उम्मीद बर नहीं आती नामा-बर की भी हो ख़बर या-रब कोई उस की ख़बर नहीं आती जो दुआ सू-ए-अर्श जाती है हो के फिर बा-असर नहीं आती किस तवक़्क़ो पे हम जिएँ 'रहबर' इक तमन्ना भी बर नहीं आती