बात जो कहने को थी सब से ज़रूरी रह गई

By aftab-iqbal-shamimMay 22, 2024
बात जो कहने को थी सब से ज़रूरी रह गई
क्या किया जाए ग़ज़ल ये भी अधूरी रह गई
रिज़्क़ से बढ़ कर उसे कुछ और भी दरकार था
कल वो ताइर उड़ गया पिंजरे में चूरी रह गई


थी बहुत शफ़्फ़ाफ़ लेकिन दिन की उड़ती गर्द में
शाम तक ये ज़िंदगी रंगत में भूरी रह गई
क्यों चले आए खुली आँखों की वहशत काटने
इस गली में नींद क्या पूरी की पूरी रह गई


बस यही हासिल हुआ तरमीम की तरमीम से
हासिल-ओ-मक़सूद में पहली सी दूरी रह गई
किस क़रीने से छुपाया भेद लेकिन खुल गया
ग़ालिबन कोई इशारत ला-शु'ऊरी रह गई


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