बात फिर निकली नई इक बात से

By nomaan-shauqueFebruary 27, 2024
बात फिर निकली नई इक बात से
लफ़्ज़ आगे बढ़ गए औक़ात से
मैं हूँ सदियों का अंधेरा मेरी जान
आप तो जागे हुए हैं रात से


पानियों ने पानियों से जंग की
आज फिर आँखें लड़ीं बरसात से
तुम धरे बैठे रहो हाथों पे हाथ
दर्द भी अब जा रहा है हाथ से


‘आलम-ए-बाला में कैसी शा'इरी
दाद लें क्या हूर से जिन्नात से
तुम बरसते भी नहीं हो खुल के अब
और क्या माँगा करें बरसात से


आया सज्दे में ये बेहूदा ख़याल
इतनी उम्मीद इक ख़ुदा की ज़ात से
16404 viewsghazalHindi