बचा अब क्या हमारा है
By abu-hurrairah-abbasiSeptember 2, 2024
बचा अब क्या हमारा है
ख़सारा ही ख़सारा है
भँवर में फँस गया हूँ मैं
यहाँ कोई किनारा है
बुलावा उस ने भेजा है
ये सब कैसा इशारा है
वो आए हैं हमें मिलने
बिछड़ना फिर दुबारा है
अरे आओ मियाँ बैठो
लो ख़ंजर ये तुम्हारा है
जिगर का ख़ून दे दे कर
तिरा हर क़र्ज़ उतारा है
अगर आए तो आए मौत
यही बस एक चारा है
ख़ुशी मुमकिन नहीं थी पर
हमें ये ग़म गवारा है
हमारी हर ग़ज़ल का ही
मोहब्बत इस्ति'आरा है
सर-ए-सहरा मुसाफ़िर हूँ
मिरी मंज़िल वो तारा है
ख़सारा ही ख़सारा है
भँवर में फँस गया हूँ मैं
यहाँ कोई किनारा है
बुलावा उस ने भेजा है
ये सब कैसा इशारा है
वो आए हैं हमें मिलने
बिछड़ना फिर दुबारा है
अरे आओ मियाँ बैठो
लो ख़ंजर ये तुम्हारा है
जिगर का ख़ून दे दे कर
तिरा हर क़र्ज़ उतारा है
अगर आए तो आए मौत
यही बस एक चारा है
ख़ुशी मुमकिन नहीं थी पर
हमें ये ग़म गवारा है
हमारी हर ग़ज़ल का ही
मोहब्बत इस्ति'आरा है
सर-ए-सहरा मुसाफ़िर हूँ
मिरी मंज़िल वो तारा है
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