बदन बनाते हैं थोड़ी सी जाँ बनाते हैं

By salim-saleemFebruary 28, 2024
बदन बनाते हैं थोड़ी सी जाँ बनाते हैं
हम उस के 'इश्क़ में कार-ए-जहाँ बनाते हैं
बिगाड़ देता है कोई हमें किनारों से
कभी जो ख़ुद को तिरे दरमियाँ बनाते हैं


'अजीब रक़्स में रहता है वो बगूला-सिफ़त
तो हम भी उस के लिए आँधियाँ बनाते हैं
वो हाथ देते हैं तरतीब मेरे अज्ज़ा को
फिर उस के बा'द मुझे राएगाँ बनाते हैं


सियाह पड़ता गया है वो लम्हा-ए-दीदार
मिरे चराग़ भी कितना धुआँ बनाते हैं
38227 viewsghazalHindi