बदन चराग़ नहीं हैं मोहब्बतें अपनी
By nomaan-shauqueFebruary 27, 2024
बदन चराग़ नहीं हैं मोहब्बतें अपनी
मगर ये लौ को बढ़ाती ज़रूरतें अपनी
तमाम हक़ के तरफ़-दार चारों ख़ाने चित
कोई सँभाल न पाया सदाक़तें अपनी
बदल न लें कहीं रस्ता ये आग की लपटें
हमें ही राख न कर दें ये नफ़रतें अपनी
अब उस से रू-ब-रू होने में कुछ नहीं रख्खा
बला के नक़्श बनाती हैं वहशतें अपनी
समेट अपने सितारों को आसमाँ वाले
बुझा के छोड़ गईं जिन को हसरतें अपनी
किधर से आती है जाने ये ख़्वाब-नाक सदा
तो कम न होंगी कभी क्या मसाफ़तें अपनी
मगर ये लौ को बढ़ाती ज़रूरतें अपनी
तमाम हक़ के तरफ़-दार चारों ख़ाने चित
कोई सँभाल न पाया सदाक़तें अपनी
बदल न लें कहीं रस्ता ये आग की लपटें
हमें ही राख न कर दें ये नफ़रतें अपनी
अब उस से रू-ब-रू होने में कुछ नहीं रख्खा
बला के नक़्श बनाती हैं वहशतें अपनी
समेट अपने सितारों को आसमाँ वाले
बुझा के छोड़ गईं जिन को हसरतें अपनी
किधर से आती है जाने ये ख़्वाब-नाक सदा
तो कम न होंगी कभी क्या मसाफ़तें अपनी
79443 viewsghazal • Hindi