बड़े नाज़ों से दिल में जल्वा-ए-जानाना आता है ये घर जिस ने बनाया है वो वो साहब-ख़ाना आता है ख़ुदा के वास्ते मुँह से लगा दे ख़ुम के ख़ुम साक़ी बड़ा घनघोर बादल जानिब-ए-मय-ख़ाना आता है निकल जाता है मुँह से नाम उन का बातों बातों में ज़बाँ पर जो न आना था वो बेताबाना आता है निकलती है किसी पर झूम कर वो मुझ पे गिरती है तुम्हारी तेग़ को क्या शेवा-ए-मस्ताना आता है बहार आख़िर हुई है 'क़द्र' की तुर्बत पे मेला है यहाँ बेड़ी बढ़ाने को हर इक दीवाना आता है