बाग़-ए-अदन के खिलते गुलाबों के साथ था मैं इक हसीन जिस्म के ख़्वाबों के साथ था महरूमियों का फ़ैज़ अज़ाबों के साथ था ये सिलसिला ग़मों की किताबों के साथ था मैं सुन रहा था अपनी सदाओं की बाज़गश्त लेकिन दिमाग़ फ़न के रबाबों के साथ था हर बूँद गरचे अपने लहू की हुई सफ़ेद पानी ज़रा सा फिर भी सराबों के साथ था थे हादसों के शहर में सब उस के मो'तक़िद वो जो हमेशा ख़ाना-ख़राबों के साथ था शोहरत का हर गुलाब हुआ ग़र्क़-ए-आब जब 'जामी' तिरा वजूद हबाबों के साथ था