बाग़-ए-उर्दू की महक राज़-ए-ख़ुदा होती है
By aftab-shahSeptember 5, 2024
बाग़-ए-उर्दू की महक राज़-ए-ख़ुदा होती है
शहर-ए-उर्दू में हवा बाद-ए-सबा होती है
अच्छा जितना भी हो लहजा वो सदा होती है
बात कर ले जो सुख़न-गर तो जुदा होती है
हर्फ़ मिलते हैं जो दिल से तो निदा आती है
मा'नी लफ़्ज़ों से मिलें तो वो रिदा होती है
शे'र पढ़ने पे युँही दाद नहीं मिलती उन्हें
उर्दू तो शीरीं-दहन पर ही फ़िदा होती है
सुनने वालों को किसी और नगर ले जाए
उर्दू वालों की ज़बाँ रब की 'अता होती है
लहजा मिल जाए जो उर्दू से तो वो नाज़ करे
उर्दू लहजे से मिले तो वो अदा होती है
ख़ुशबू उर्दू की नज़र आती है दिल वालों में
खनक उर्दू की तो बोली में सदा होती है
शहर-ए-उर्दू में हवा बाद-ए-सबा होती है
अच्छा जितना भी हो लहजा वो सदा होती है
बात कर ले जो सुख़न-गर तो जुदा होती है
हर्फ़ मिलते हैं जो दिल से तो निदा आती है
मा'नी लफ़्ज़ों से मिलें तो वो रिदा होती है
शे'र पढ़ने पे युँही दाद नहीं मिलती उन्हें
उर्दू तो शीरीं-दहन पर ही फ़िदा होती है
सुनने वालों को किसी और नगर ले जाए
उर्दू वालों की ज़बाँ रब की 'अता होती है
लहजा मिल जाए जो उर्दू से तो वो नाज़ करे
उर्दू लहजे से मिले तो वो अदा होती है
ख़ुशबू उर्दू की नज़र आती है दिल वालों में
खनक उर्दू की तो बोली में सदा होती है
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